रूत
एलीमेलेक के परिवार का मोआब को जाना
11अब न्यायी लोगों के शासन के दिनों में ऐसा हुआ कि देश में अकाल पड़ा। और यहूदा के बैतलहम का एक पुरुष अपनी स्त्री और दोनों पुत्रों को संग लेकर मोआब के देश में परदेशी होकर रहने के लिए चला।
2और उस पुरुष का नाम एलीमेलेक, और उसकी पत्नी का नाम नाओमी, और उसके दो बेटों के नाम महलोन और किल्योन थे; ये एप्राती अर्थात् यहूदा के बैतलहम के रहनेवाले थे। तो उन्होंने मोआब प्रदेश की तरफ यात्रा की और वहां रहने लगे।
3तब नाओमी का पति एलीमेलेक मर गया, और वह और उसके दोनों पुत्र रह गए।
4और उन्होंने एक-एक मोआबिन स्त्री ब्याह ली: पहली स्त्री का नाम ओर्पा था और दूसरी स्त्री का नाम रूत था। फिर वे वहाँ कोई दस वर्ष रहे।
5और महलोन और किल्योन दोनों भी मर गए, और वह स्त्री अपने दोनों पुत्रों और पति से वंचित हो गई।
नाओमी का रूत के साथ वापस आना
6तब वह मोआब के देश से अपनी दोनों बहुओं समेत लौट जाने को चली क्योंकि उसने सुना था कि यहोवा ने अपनी प्रजा के लोगों की सुधि ले के उन्हें भोजनवस्तु दी है।
7अतः वह अपनी दोनों बहुओं समेत उस स्थान से जहाँ रहती थी निकली, और उन्होंने यहूदा देश को लौट जाने का मार्ग लिया।
8तब नाओमी ने अपनी दोनों बहुओं से कहा, “तुम अपने-अपने मायके लौट जाओ। और जैसे तुम ने उनसे जो मर गए हैं और मुझसे भी प्रीति की है, वैसे ही यहोवा तुम पर कृपा करे।
9यहोवा ऐसा करे कि तुम फिर अपने-अपने पति के घर में विश्राम पाओ।” तब नाओमी ने उनको चूमा, और वे चिल्ला चिल्लाकर रोने लगीं,
10पर उन्होंने उससे कहा, “किन्तु, हम तेरे संग तेरे लोगों के पास चलेंगी।”
11पर नाओमी ने कहा, “हे मेरी बेटियों, लौट जाओ, तुम क्यों मेरे संग चलोगी? क्या मेरी कोख में और पुत्र हैं जो तुम्हारे पति हों?
12हे मेरी बेटियों, लौटकर चली जाओ, क्योंकि मैं पति करने को बूढ़ी हो चुकी हूँ। और चाहे मैं कहती भी, कि मुझे आशा है, और आज की रात मेरा पति होता भी, और मेरे पुत्र भी होते,
13तो भी क्या तुम उनके सयाने होने तक आशा लगाए ठहरी रहतीं? क्या तुम उनके निमित्त पति करने से रुकी रहतीं? नहीं मेरी बेटियों, क्योंकि मेरा दुःख तुम्हारे दुःख से बहुत बढ़कर है; देखो, यहोवा का हाथ मेरे विरुद्ध उठा है।”
14तब वे चिल्ला चिल्लाकर फिर से रोने लगीं। तब ओर्पा ने तो अपनी सास को चूमा, परन्तु रूत उससे लिपटी रही।
15तब नाओमी ने कहा, “देख, तेरी जिठानी तो अपने लोगों और अपने देवता के पास लौट गई है; इसलिए तू अपनी जिठानी के पीछे लौट जा।”
16पर रूत बोली, “तू मुझसे यह विनती न कर, कि मुझे त्याग या छोड़कर लौट जा; क्योंकि जिधर तू जाएगी उधर मैं भी जाऊँगी; जिस जगह तू टिके वहाँ मैं भी टिकूँगी; तेरे लोग मेरे लोग हैं, और तेरा परमेश्वर मेरा परमेश्वर है।
17जहाँ तू मरेगी वहाँ मैं भी मरूँगी, और वहीं मुझे मिट्टी दी जाएगी। यहोवा मुझसे वैसा ही वरन् उससे भी अधिक करे यदि मृत्यु छोड़ और किसी कारण मैं तुझ से अलग होऊँ।”
18तब नाओमी ने देखा कि वह उसके साथ जाने के लिए दृढ़ थी, और उसने उससे कोई बात नही कही।
19तो वे दोनों चल पड़ी और बैतलहम को पहुँचीं। और ऐसा हुआ कि उनके बैतलहम में पहुँचने पर सारे नगर में उनके कारण हलचल मच गई; और स्त्रियाँ कहने लगीं, “क्या यह नाओमी है?”
20उसने उनसे कहा, “मुझे नाओमी न कहो, मुझे मारा कहो, क्योंकि सर्वशक्तिमान ने मुझ को बड़ा दुःख दिया है।
21मैं भरी पूरी चली गई थी, परन्तु यहोवा ने मुझे खाली हाथ लौटाया है। इसलिए जबकि यहोवा ही ने मेरे विरुद्ध साक्षी दी, और सर्वशक्तिमान ने मुझे दुःख दिया है1 1.21 सर्वशक्तिमान ने मुझे दुःख दिया है: नाओमी बड़ी दुःखी आत्मा में शिकायत करती है कि परमेश्वर ही उसको भूल गया है और उसके पापों का दण्ड उसे दे रहा है।, फिर तुम मुझे क्यों नाओमी कहती हो?”
22इस प्रकार नाओमी अपनी मोआबिन बहू रूत के साथ लौटी, जो मोआब देश से आई थी। और वे जौ कटने के आरम्भ में बैतलहम पहुँचीं।
रूत का बोअज से मिलना
21नाओमी के पति एलीमेलेक के कुल में उसका एक बड़ा धनी कुटुम्बी था, जिसका नाम बोअज था।
2और मोआबिन स्त्री रूत ने नाओमी से कहा, “कृप्या, मैं किसी खेत में जाना और सिला बीनना चाहती हूँ उसके पीछे जो मुझ पर अनुग्रह की दृष्टि करे।” उसने कहा, “जा, मेरी बेटी।”
3इसलिए वह चली गई और जाकर एक खेत में लवनेवालों के पीछे बीनने लगी। और संयोग से, वह जिस खेत में गई थी वह बोअज का था, जो एलीमेलेक का कुटुम्बी था।
4तब देखो, बोअज बैतलहम से आया! और उसने लवनेवालों से कहा, “यहोवा तुम्हारे संग रहे,” और वे उससे बोले, “यहोवा तुझे आशीष दे।”
5तब बोअज ने अपने उस सेवक से जो लवनेवालों के ऊपर ठहराया गया था पूछा, “वह किसकी कन्या है?”
6जो सेवक लवनेवालों के ऊपर ठहराया गया था उसने उत्तर दिया और कहा , “वह मोआबिन कन्या है, जो नाओमी के संग मोआब देश से लौट आई है।
7और उसने कहा था, ‘मुझे लवनेवालों के पीछे-पीछे पूलों के बीच बीनने और बालें बटोरने दे।’ तो वह आई और भोर से अब तक यहीं है। केवल थोड़ी देर तक घर में रही थी।”
8तब बोअज ने रूत से कहा, “क्या तू मेरी सुनती है, मेरी बेटी? किसी दूसरे के खेत में बीनने को न जाना, और नाहि यहाँ से जाना। परन्तु यह कर: मेरी ही दासियों के संग रहना।
9जिस खेत को वे लवती हों उसी पर तेरा ध्यान लगा रहे, और उन्हीं के पीछे-पीछे चला करना2 2.9 उन्हीं के पीछे-पीछे चला करना: उनके खेतों के बाढ़े नहीं होते थे, केवल मुण्डेरों से ही ज्ञात होता था की दूसरा खेत अलग है अतः रूत के लिए किसी ओर के खेत में प्रवेश कर जाना स्वाभाविक था जहाँ वह बोअज की सुरक्षा के बाहर हो जाएगी और अजनबियों में फँस सकती है।। क्या मैंने जवानों को आज्ञा नहीं दी, कि तुझे न छुएँ? और जब तुझे प्यास लगे, तू बरतनों के पास जाकर जवानों का भरा हुआ पानी पीना।”
10तब वह भूमि तक झुककर मुँह के बल गिरी, और उससे कहने लगी, “क्या कारण है कि तूने मुझ पर अनुग्रह की दृष्टि करके मेरी सुधि ली है, जबकि मैं एक परदेशिन हूँ?”
11तब बोअज ने उत्तर दिया, “जो कुछ तूने अपने पति की मृत्यु के बाद अपनी सास से किया है मुझे विस्तार के साथ बताया गया है। तू अपने माता पिता और जन्म-भूमि को छोड़कर ऐसे लोगों में आई है जिनको पहले तू न जानती थी।
12यहोवा तेरी करनी का फल दे, और इस्राएल का परमेश्वर यहोवा जिसके पंखों के तले तू शरण लेने आई है, तुझे पूरा प्रतिफल दे।”
13उसने कहा, “हे मेरे प्रभु, तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे, क्योंकि यद्यपि मैं तेरी दासियों में से किसी के भी बराबर नहीं हूँ, तो भी तूने अपनी दासी के मन में पैठनेवाली बातें कहकर मुझे शान्ति दी है।”
14फिर, खाने के समय बोअज ने उससे कहा, “यहीं आकर रोटी खा, और अपना कौर सिरके में डूबा।” तो वह लवनेवालों के पास बैठ गई; और उसने उसको भुनी हुई बालें दीं। और उसने खाया और तृप्त हुई, वरन् उसने कुछ बचा भी रखा।
15फिर वह बीनने को उठी। तब बोअज ने अपने जवानों को आज्ञा दी और कहा, “उसको पूलों के बीच-बीच में भी बीनने दो, और उस पर दोष मत लगाओ।
16वरन् मुट्ठी भर जाने पर कुछ-कुछ निकालकर गिरा भी दिया करो, और उसके बीनने के लिये छोड़ दो, और उसे डाँटना मत।”
17अतः वह साँझ तक खेत में बीनती रही। तब जो कुछ वह बीन चुकी उसने उसे फटका3 2.17 फटका: हो सकता है कि वे लकड़ी से भरकर अन्न को अर्थात्, एक छड़ी के साथ, जैसा कि शब्द का तात्पर्य है। ये विधि आज तक चलन में है। रूत ने अपने और अपनी सास के लिए पर्याप्त अन्न एकत्र कर लिया था।, और वह कोई एपा भर जौ निकला।
18और वह उसे उठाकर नगर में गई, और उसकी सास ने देखा कि उसने क्या बीना है, फिर उसने तृप्त होने के बाद जो कुछ बचा था, उसे निकाल लिया और उसने उसे दे दिया।
19उसकी सास ने उससे कहा, “आज तू कहाँ बीनती, और कहाँ काम करती थी? धन्य वह हो जिसने तेरी सुधि ली है।” तब उसने अपनी सास को बता दिया, कि उसने किसके पास काम किया। और उसने कहा, “जिस पुरुष के पास मैंने आज काम किया उसका नाम बोअज है।”
20फिर नाओमी ने अपनी बहू से कहा, “वह यहोवा की ओर से आशीष पाए, क्योंकि उसने न तो जीवित पर से और न मरे हुओं पर से अपनी करुणा हटाई!” फिर नाओमी ने उससे कहा, “वह पुरुष तो हमारा एक कुटुम्बी है, वरन् उनमें से है जिनको हमारी भूमि छुड़ाने का अधिकार है।”
21फिर रूत मोआबिन बोली, “उसने मुझसे यह भी कहा, ‘जब तक मेरे सेवक मेरी सारी कटनी पूरी न कर ले तब तक उन्हीं के संग-संग लगी रह।’”
22नाओमी ने अपनी बहू रूत से कहा, “मेरी बेटी यह अच्छा भी है, कि तू उसी की दासियों के साथ जाया करे, ताकि वे तुझे किसी दूसरे खेत में हानि न पहुँचा सकें।”
23इसलिए रूत जौ और गेहूँ दोनों की कटनी के अन्त तक बीनने के लिये बोअज की दासियों के साथ-साथ लगी रही। और वह अपनी सास के यहाँ रहती थी।
रूत के छुटकारे का आश्वासन
31फिर उसकी सास नाओमी ने उससे कहा, “हे मेरी बेटी, क्या मैं तेरे लिये आश्रय न ढूँढ़ूँ कि तेरा भला हो?
2तो अब, क्या बोअज हमारा कुटुम्बी नहीं है, जिसकी दासियों के पास तू काम करती थी? वह तो आज रात को खलिहान में जौ फटकेगा4 3.2 वह तो आज रात को खलिहान में जौ फटकेगा: बोअज धनवान तो था परन्तु अन्न फटकने में स्वयं परिश्रम करता था और अपने अन्न की चोरों से रक्षा करने के लिए रात में खुले खलिहान में सोता था।।
3अब तू स्नान कर और तू तेल लगा, और वस्त्र पहन और खलिहान को जा। जब तक वह पुरुष खा पी न चुके तब तक अपने को उस पर प्रगट न करना।
4और यह होने दे कि जब वह लेट जाए, तुझे सही जगह का पता चल जाए जहाँ वह लेटता है; तब भीतर जा उसके पाँव उघाड़ के लेट जाना; तब वह स्वयं तुझे बताएगा कि तुझे क्या करना चाहिए।”
5और उसने उससे कहा, “जो कुछ तू कहती है वह सब मैं करूँगी।”
6तब वह खलिहान को गई और अपनी सास के कहे अनुसार ही किया।
7और बोअज खा पी चुका, और उसका मन आनन्दित था, और वह जाकर अनाज के ढेर के एक सिरे पर लेट गया। तब वह चुपचाप आई, और उसके पाँव उघाड़े और लेट गई।
8फिर ऐसा हुआ की आधी रात को कि वह पुरुष चौंका, और पलटा, और देखो एक स्त्री उसके पाँवों के पास लेटी हुई है।
9और उसने कहा, “तू कौन है?” तब वह बोली, “मैं रूत हूँ; तेरी दासी। तू अपनी दासी को अपनी चद्दर ओढ़ा दे5 3.9 अपनी दासी को अपनी चद्दर ओढ़ा दे: इसका अर्थ है कि उसे ग्रहण करके अपनी पत्नी मान ले।, क्योंकि तू हमारा छुड़ानेवाला कुटुम्बी है।”
10फिर उसने कहा, “हे मेरी बेटी, यहोवा की ओर से तुझ पर आशीष हो; क्योंकि तूने अपनी पिछली वाचा के प्रति विश्वासयोग्यता पहली से अधिक दिखाई, क्योंकि तू, क्या धनी, क्या कंगाल, किसी जवान के पीछे नहीं लगी।
11इसलिए अब, हे मेरी बेटी, मत डर, जो कुछ तू कहेगी, मैं तेरे लिए करूँगा; क्योंकि मेरे फाटक के सब लोग जानते हैं कि तू योग्य स्त्री है।
12और अब, यह सच है कि मैं छुड़ानेवाला कुटुम्बी हूँ, पर एक और छुड़ानेवाला कुटुम्बी है जो मुझसे ज्यादा निकटतर है।
13आज रात यहीं ठहर जा। और जब सुबह होगी, अगर वह तुझे छुड़ाएगा, तो भला, वही तुझे छुड़ाने दे। लेकिन अगर वह तुम्हें छुड़ाना नहीं चाहता है, तो मैं तुम्हें स्वयं छुड़ाऊँगा, जैसा कि यहोवा रहता है। भोर तक लेटी रह।”
14तो वह उसके पाँवों के पास भोर तक लेटी रही, और इससे पहले कि कोई अपने मित्र को पहचान पाए वह उठ गई; और उसने कहा, “कोई यह जानने न पाए कि खलिहान में कोई स्त्री आई थी।”
15तब बोअज ने कहा, “जो चद्दर तू ओढ़े है उसे फैला और पकड़ ले।” इसलिए उसने उसे पकड़ा। तब उसने छः नपुए जौ नापकर उसको उठा दिया; फिर वह नगर में चली गई।
16तब वह अपनी सास के पास आई और उसने पूछा, “हे बेटी, कौन है?” तब उसने उसको सब बताया जो कुछ उस पुरुष ने उसके लिए किया था।
17और उसने कहा, “उसने मुझे छः नपुए जौ दिए, क्योंकि उसने कहा ‘तुझे अपनी सास के पास खाली हाथ नहीं जाना चाहिए।”’
18फिर उसने कहा, “बैठ जा, मेरी बेटी, जब तक तू न जाने कि इस बात का कैसा फल निकलेगा, क्योंकि आज जब तक वह पुरुष सब बातें निपटा नहीं लेगा तब तक चैन से नहीं बैठेगा।”
बोअज का रूत को छुड़ाना
41अब बोअज फाटक6 4.1 फाटक: पूर्वी देशों में नगर द्वारा समागम का, व्यापार का, और न्याय करने का स्थान होता था। के पास गया और बैठ गया; और देखो, वह छुड़ानेवाले कुटुम्बी वहाँ से गुजर रहा था, वही मनुष्य जिसके बारे में बोअज ने चर्चा की थी। और उसने कहा, “इधर आ और यहीं बैठ जा, महाशय;” तो वह उधर जाकर बैठ गया।
2तब उसने नगर के दस वृद्ध लोगों को लिया और कहा, “यहाँ बैठ जाओ।” तो वे बैठ गए।
3तब उसने छुड़ानेवाले कुटुम्बी से कहा, “नाओमी जो मोआब देश से लौट के आई है, हमारे भाई एलीमेलेक की एक टुकड़ा भूमि बेच रही है।
4अब मेरे लिए, मैंने कहा, कि मैं तेरे कानों को बेपर्दा करूं, यह कहते हुए ‘उसे खरीद ले,' यहाँ बैठे हुओं के सामने और मेरे लोगों के वृद्धों के सामने मोल ले। यदि तू उसको छुड़ाएगा, तो उसे छुड़ा ले। परन्तु यदि तू न छुड़ाए, तो मुझे बता दे, कि मैं जान लूँ; क्योंकि तुझे छोड़ उसको छुड़ानेवाला कोई नहीं है, और तेरे बाद मैं हूँ।” फिर उसने कहा, “मैं स्वयं उसे छुड़ाऊँगा।”
5फिर बोअज ने कहा, “जिस दिन तू उस भूमि को नाओमी के हाथ से मोल ले, तू रूत मोआबिन को भी जो मरे हुए की स्त्री है इस मनसा से पाएगा, कि मरे हुए का नाम उसके भाग में स्थिर कर दे।”
6फिर छुड़ानेवाले कुटुम्बी ने कहा, “ मैं उसको मेरा निज भाग बिगाड़े बिना नहीं छुड़ा सकता। इसलिए मेरा छुड़ाने का अधिकार तू ले ले, क्योंकि मैं उसे छुड़ा नहीं सकता।”
7अब, पुराने समय इस्राएल में, छुड़ाने और सामानों के आदान-प्रदान के विषय में इस प्रकार पुष्टि की जाती थी: एक मनुष्य अपनी जूती उतार के दूसरे को देता था। इस्राएल में प्रमाणित इसी रीति से होता था।
8इसलिए छुड़ानेवाले कुटुम्बी ने बोअज से कहा; “ तू अपने लिए उसे मोल ले,” और उसने अपनी जूती उतारी।
9तब बोअज ने वृद्धों और सब लोगों से कहा, “तुम आज इस बात के साक्षी हो कि मैं नाओमी के हाथ से वह सब कुछ मोल लेता हूँ, जो एलीमेलेक और वह सब जो किल्योन और महलोन का था।
10और महलोन की स्त्री रूत मोआबिन को भी मैं अपनी पत्नी करने के लिये इस मनसा से मोल लेता हूँ, कि मरे हुए का नाम उसके निज भाग पर स्थिर करूँ, ताकि मरे हुए का नाम उसके भाइयों में से और उसके स्थान के फाटक से मिट न जाए; तुम लोग आज साक्षी ठहरे हो।”
11और फाटक के पास के सब लोगों ने और वृद्धों ने कहा, “हम साक्षी हैं। यह जो स्त्री तेरे घर में आती है उसको यहोवा राहेल और लिआ के समान करे, जिन्होंने इस्राएल के घराने को बनाया। एप्राता में सम्मान पाना, और बैतलहम में तेरा बड़ा नाम हो;
12और तेरा घराना पेरेस के समान हो जाए, जो तामार से यहूदा के द्वारा उत्पन्न हुआ, उस सन्तान के द्वारा जो यहोवा इस जवान स्त्री के द्वारा तुझे दे।” (मत्ती 1:3)
बोअज और रूत का वंश
13तो बोअज ने रूत को ब्याह लिया, और वह उसकी पत्नी हो गई; और वह उसके पास गया। तब तब यहोवा ने उसे गर्भधारण दिया, और उसने एक पुत्र को जन्म दिया। (मत्ती 1:4, 5)
14तब स्त्रियों ने नाओमी से कहा, “यहोवा धन्य है, जिसने तुझे आज छुड़ानेवाले कुटुम्बी के बिना नहीं छोड़ा; इस्राएल में इसका बड़ा नाम हो।
15अब यह तेरे जी में जी ले आनेवाला और तेरा बुढ़ापे में पालनेवाला होगा। क्योंकि तेरी बहू जो तुझ से प्रेम रखती है, उसने उसको जन्म दिया है - जो सात बेटों से बेहतर है।”
16और नाओमी ने उस बच्चे को लिया और अपनी गोद में रखा, और वह उसकी दाई बन गई।
17इसलिए उसकी पड़ोसिनों ने पुकार कर उसका नाम यह कहकर रखा, कि “नाओमी को एक बेटा उत्पन्न हुआ है”, और उन्होंने उसका का नाम ओबेद7 4.17 ओबेद: अर्थात् सेवक उसने इस विचार से उसको यह नाम दिया कि वह अपनी दादी नाओमी की प्रेम से सेवा करेगा रखा। वह यिशै का पिता और दाऊद का दादा था। (मत्ती 1:6)
18अब पेरेस की पीढ़ियां यह हैं, अर्थात् पेरेस हेस्रोन का पिता था,
19और हेस्रोन राम का पिता था, और राम अम्मीनादाब का पिता था,
20और अम्मीनादाब नहशोन का पिता था, और नहशोन सलमोन का पिता था,
21और सलमोन बोअज का पिता था, और बोअज ओबेद का पिता था,
22और ओबेद यिशै का पिता था, और यिशै दाऊद का पिता था। (मत्ती 1:4-6, लूका 3:31, 32)